जयशंकर की इस बात पर चीन को मिर्ची तो जरूर लगेगी...भूल जाएगा भारत पर आरोप लगाना

नई दिल्ली: 1995 में भारत आसियान के साथ एक संवाद भागीदार बन गया। भारत के सोवियत संघ के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंध थे और वह गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) का अगुआ था, जिससे भारत के लिए आसियान के साथ जुड़ना मुश्किल हो गया। भारत और चीन के बीच बढ़ती रणनी

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नई दिल्ली: 1995 में भारत आसियान के साथ एक संवाद भागीदार बन गया। भारत के सोवियत संघ के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंध थे और वह गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) का अगुआ था, जिससे भारत के लिए आसियान के साथ जुड़ना मुश्किल हो गया। भारत और चीन के बीच बढ़ती रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही थी। ऐसे में भारत को चीनी इरादों पर संदेह था और उसे लगा कि आसियान उसे इस क्षेत्र में एक 'जिम्मेदार महाशक्ति' के रूप में मानता है। वहीं, जब शीत युद्ध की समाप्ति और सोवियत संघ का पतन हुआ तो भारत ने आसियान को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में मानना शुरू कर दिया।
हाल ही में सिंगापुर के दौरे पर गए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दुनिया में हो रहे बदलाव और संघर्षों के बारे में बात करते हुए लचीली आपूर्ति, विश्वसनीय साझेदार और तरह-तरह के उत्पादन की जरूरतों पर बल दिया। हालांकि, इस दौरान जयशंकर ने चीन को लेकर आगाह भी किया।

चीन का नाम लिए बगैर खतरे के बारे में आसियान को किया आगाह

सिंगापुर में आसियान इंडिया नेटवर्क आफ थिंक टैंक्स को संबोधित करते हुए जयशंकर ने आसियान के साथ संबंधों को और बढ़ाए जाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि पूर्व में लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे और दरारें उम्मीद से कहीं अधिक बढ़ रही हैं। चीन का नाम लिए बिना जयशंकर ने कहा, हमारे अपने महाद्वीप में क्षेत्रीय विवाद और अस्थिरता की वजह से बार-बार अंतरराष्ट्रीय कानून के समक्ष चुनौतियां पैदा हो रही हैं। जयशंकर के इस बयान से चीन को नागवार तो जरूर गुजरेगी, क्योंकि चीन का आसियान देशों के संबंध बेहद खराब हैं।

चीन की आसियान देशों पर गिद्ध की तरह नजर

दरअसल, चीन दक्षिण चीन सागर पर आसियान देशों के भौगोलिक हिस्सों पर दावा करता है। चीन की बढ़ती गतिविधियों से आसियान देशों के जहाजों की आवाजाही को नुकसान पहुंचा है। चीन ने दक्षिण चीन सागर में विवादों के शांतिपूर्ण समाधान से जुड़ी प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन किया है। चीन ने यूएन के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है। चीन और आसियान सदस्यों फिलीपींस और वियतनाम के बीच हिंसक झड़पें हुई हैं।

भारत के लिए क्यों और कितना अहम है आसियान

आसियान, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन है। इसमें इंडोनेशिया, वियतनाम, लाओस, ब्रुनेई, थाईलैंड, म्यांमार, फ़िलीपींस, कंबोडिया, सिंगापुर, और मलेशिया शामिल हैं। भारत 1995 से ही आसियान का वार्ता साझेदार है और चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। आसियान देश हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर तक बड़े समुद्री क्षेत्रों के साथ रणनीतिक रूप से स्थित हैं। ये समुद्री क्षेत्र आसियान के कई सदस्य देशों के लिये महत्त्वपूर्ण व्यापार के रास्ते भी है। भारत अब एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भी आसियान देशों के साथ अपने संबंध और बढ़ा रहा है।

भारत आसियान का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार

भारत और आसियान के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पर हस्ताक्षर किए गए हैं। भारत, आसियान का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। आसियान देशों के साथ बेहतर व्यापार संबंधों से भारत को आर्थिक वृद्धि और विकास में मदद मिलेगी।

समुद्र में जहाजों की आवाजाही और सुरक्षा

भारत और आसियान समुद्री सुरक्षा बनाए रखने में अहम साझेदार हैं। आसियान, भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति में अहम भूमिका निभाता है। साथ ही भारत और आसियान क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने में साझा हित रखते हैं।

चीन पर नकेल कसने के लिए जरूरी है आसियान

आसियान की रणनीतिक स्थिति चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में मदद करती है। भारत के आसियान देशों के साथ संबंध जितने बढ़ेंगे, चीन उतना ही काबू में रहेगा। उसके बढ़ते दबदबे पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

आतंकवाद का मुकाबला करने में मिलेगा सहयोग

भारत और आसियान, आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय अपराध, और साइबर सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर सहयोग करते हैं। इसके अलावा, आसियान देशों के साथ संपर्क पूर्वोत्तर भारत के आर्थिक विकास में मदद करता है। ऐसे में भारत आसियान संबंध होना बेहद जरूरी है। भारत इन सभी क्षेत्रों में बड़े भाई की भूमिका निभा सकता है।

जयशंकर ने इन चुनौतियों को लेकर सहयोग की बात कही

जयशंकर ने कहा, राजनीतिक रूप से मौजूदा चुनौतियों का समाधान करने में आसियान देशों का सहयोग महत्वपूर्ण हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के दौर में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चिंता का विषय है। इसी तरह, वैश्विक महामारी के बाद स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए तैयारी करना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।

इन देशों के साथ अक्सर होता रहा है चीन का विवाद

आसियान देशों के साथ चीन का समुद्री विवाद मुख्य विवाद है। ब्रुनेई, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और ताइवान दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावे पर हमेशा से ऐतराज जताते रहे हैं। 2014 में फिलीपींस ने समुद्री सुरक्षा को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की बात कही थी, मगर अक्सर उसके जहाजों को चीन परेशान करता ही रहता है।

चीन ने कई द्वीपों पर रनवे और सैन्य ठिकाने बना लिए

चीन विवादों को सुलझाने के लिए कूटनीति और बातचीत की बात करता है। मगर, उसके आक्रामक कदम भरोसे को तोड़ते ही रहे हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2015 में दावा किया था कि चीन का दक्षिण चीन सागर में सैन्यीकरण करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन यह दावा तब झूठा साबित हुआ जब क्षेत्र में कई चीनी कृत्रिम द्वीपों पर रनवे और सैन्य प्रतिष्ठान बनाए गए।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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